Friday 19 February 2016

टावर वाले बाबा के कसम

इ लभ लेटर मैं सरसों के खेत में नहीं तुम्हारी मुहब्बत के टावर पर चढ़कर लिख रहा हूँ... कसम आज तीन दिन से मोबाइल में टावरे नहीं पकड़ रहा था...
ए जानु... खीसियाना मत... मोहब्बत के दुश्मन खाली हमारे तुम्हारे बाउजी नहीं यूनिनार, बीएसनल और एयरसेल वालें भी हैं..जब फोनवा नहीं मिलता है न रतिया को तो मनवा करता है कि सड़की पर दउड़ दउड़ कर जान दे दें.... उ त तोहार प्यार रोक लेत है..
अरे इन सबको आशिक़ों के दुःख का क्या पता रे?.
नाइट फ्री वाला पैक डलवाये थे...लेकिन हाय रे प्यार वाला डे निकल गया सब डे बीत गया आज भि चला गया नेटवर्क ..
हम तुमको हलो भी नहीं कह पाये।
कभी कभी तो मन तो करता है की खेत बेचकर एक दुआर पर टावर लगवा लें..आ रात भर तुमसे इलू इलू करें।
जानती हो आज रहल नही जा रहा था एकदम.. मनवा एतना लभेरिया गया है... अब का बताई, कोनो टिप बा त बताई..

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